पंचाग के 5 अंग, वैदिक ज्योतिष काल चक्र


 

वैदिक ज्योतिष काल चक्र


वैदिक ज्योतिष में हम जो सबसे पहले सीखते है उसे पंचांग कहते है ।


प्रश्न 1- पंचांग को पंचांग ही क्यों कहा जाता है ?

उत्तर 1-  जिसके पांच 5 अंग होते है उसे पंचांग कहते है -: 


पंचांग के 5 अंग इस प्रकार निम्न है ,

1 तिथि , 2 वार , 3 नक्षत्र , 4 योग , 5 करण



पञ्चाङ्गम् परम्परागत भारतीय कालदर्शक है जिसमें समय के हिन्दू ईकाइयों ( तिथि,वार, नक्षत्र, योग, करण आदि) का उपयोग होता है। इसमें सारणी या तालिका के रूप में महत्वपूर्ण सूचनाएँ अंकित होतीं हैं जिनकी अपनी गणना पद्धति है। अपने भिन्न-भिन्न रूपों में यह लगभग पूरे नेपाल और भारत में माना जाता है। असम, बंगाल, ओड़िशा, में पञ्चाङ्गम् को 'पञ्जिका' कहते हैं।


'पञ्चाङ' का शाब्दिक अर्थ है, 'पाँच अङ्ग' (पञ्च + अङ्ग)। अर्थात पञ्चाङ्ग में तिथि,वार, नक्षत्र, योग, करण  - इन पाँच चीजों का उल्लेख मुख्य रूप से होता है। इसके अलावा पञ्चाङ से प्रमुख त्यौहारों, घटनाओं (ग्रहण आदि) और शुभ मुहुर्त का भी जानकारी होती है।


गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।


एक हिन्दू वर्ष में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो 2 अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। 


12 मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह 12 राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस भी नक्षत्र में होता है उसी के आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। 


चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में एक अतिरिक्त महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं। इसके अनुसार एक साल को बारह महीनों में बांटा गया है और प्रत्येक महीने में तीस 30 दिन होते हैं। महीने को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। 


एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक होती है। दिन को चौबीस घंटों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया है। एक प्रहर कोई तीन घंटे का होता है। एक घंटे में ढाई घटी होती हैं, एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं। पहर के अनुसार देखा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात होती है।


हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। पंचांग शब्द का अर्थ है , पाँच अंगो वाला। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण |

ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना के एक समान सिद्धांतों और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं।


भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख पञ्चाङ्ग ये हैं-

  • (१) विक्रमी पञ्चाङ्ग - यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पञ्चाङ्ग है जो भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भाग में प्रचलित है।
  • (२) तमिल पञ्चाङ्ग - दक्षिण भारत में प्रचलित है,
  • (३) बंगाली पञ्चाङ्ग - बंगाल तथा कुछ अन्य पूर्वी भागों में प्रचलित है।
  • (४) मलयालम पञ्चाङ्ग - यह केरल में प्रचलित है और सौर पंचाग है।


हिन्दू पञ्चाङ्ग का उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन काल से होता आ रहा है और आज भी भारत और नेपाल सहित कम्बोडिया, लाओस, थाईलैण्ड, बर्मा, श्री लंका आदि में भी प्रयुक्त होता है। हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार ही हिन्दुओं/बौद्धों/जैनों/सिखों के त्यौहार होली, गणेश चतुर्थी, सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि, वैशाखी, रक्षा बन्धन, पोंगल, ओणम ,रथ यात्रा, नवरात्रि, लक्ष्मी पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी, दुर्गा पूजा, रामनवमी, विसु और दीपावली आदि मनाए जाते हैं।


यह पंचाग के 5 अंग है।

ऐसे यह पंचांग को लेकर बताया गया है , जिससे हम जान सकते है कि - 

आज कौन सा दिन वार होगा , कौन सी तिथि होगी , कौन सा नक्षत्र होगा , साथ ही सूर्य उदय या अस्त कब होगा।

साथ ही कौन सा समय या मुहूर्त कितने समय तक रहेगा वो भी जान सकते है।



वैदिक ज्योतिष की परिभाषा


भारतीय संस्कृति का आधार वेद को माना जाता है। वेद धार्मिक ग्रंथ ही नहीं है बल्कि विज्ञान की पहली पुस्तक है जिसमें चिकित्सा विज्ञान, भौतिक, विज्ञान, रसायन और खगोल विज्ञान का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। भारतीय ज्योतिष विद्या का जन्म भी वेद से हुआ है। वेद से जन्म लेने के कारण इसे वैदिक ज्योतिष के नाम से जाना जाता है।


वैदिक ज्योतिष की परिभाषा


वैदिक ज्योतिष को परिभाषित किया जाए तो कहेंगे कि वैदिक ज्योतिष ऐसा विज्ञान या शास्त्र है जो आकाश मंडल में विचरने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, केतु  के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन करता है और इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस प्रकार प्रभावित होते हैं उनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा जाता है।


राशि और राशिचक्र


राशि और राशिचक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को को समझना आवश्यक है क्योकि राशि नक्षत्रों से ही निर्मित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में राशि और राशिचक्र निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक आभाषीय पथ निर्धारित किया गया है। इस पथ में आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाते हैं। नक्षत्रो की कुल संख्या 27 है। 27 नक्षत्रो को 360 डिग्री के आभाषीय पथ पर विभाजित करने से प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। इस तरह प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है।


वैदिक ज्योतिष में राशियो को 360 डिग्री को 12 भागो में बांटा गया है जिसे भचक्र कहते हैं। भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं। राशिचक्र में प्रत्येक राशि 30 डिग्री होती है। राशिचक्र में सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी इसलिए इसे पहला तारा माना जाता है। इसके बाद है भरणी फिर कृतिका इस प्रकार क्रमवार 27 नक्षत्र आते हैं। पहले दो नक्षत्र हैं अश्विनी और भरणी हैं जिनसे पहली राशि यानी मेष का निर्माण होता हैं इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी राशियों का निर्माण करते हैं।


नवग्रह


वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि और राहु केतु को नवग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर मे भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं और अपना अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह है, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणीतीय बिन्दु के रूप में स्थित होते हैं।


लग्न और जन्म राशि


पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब घूमती है। इस कारण से सभी ग्रह नक्षत्र व राशियां 24 घंटे में एक बार पूरब से पश्चिम दिशा में घूमती हुई प्रतीत होती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदित और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए नज़र आते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि व्यक्ति का जन्म लग्न कहलाता है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में बैठा होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है।



वैदिक ज्योतिष, जिसे वेदांत ज्योतिष भी कहा जाता है, एक प्राचीन भारतीय ज्योतिष शास्त्र का हिस्सा है जो भारतीय संस्कृति और ज्योतिष का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह ज्योतिष विद्या है जिसमें ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों, और उनके स्थितियों का अध्ययन किया जाता है और इसका उपयोग भविष्य की पूर्वानुमान, व्यक्तिगत जीवन, स्वास्थ्य, कर्म, पर्व और अन्य दिनचर्या की गणना और पूर्वानुमान के लिए किया जाता है।


वैदिक ज्योतिष का काम निम्नलिखित प्रमुख प्राधान क्षेत्रों में होता है:


1. ग्रहों का अध्ययन: वैदिक ज्योतिष ग्रहों के मौखिक और आकृतिगत गुणधर्मों का अध्ययन करता है, जैसे कि शनि, मंगल, बुध, और सूर्य, और उनके आपसी प्रभावों को गणना करता है।


2. राशियों का अध्ययन: वैदिक ज्योतिष में 12 राशियों का अध्ययन किया जाता है, जैसे कि मेष, वृषभ, मिथुन, आदि, और यहाँ तक कि व्यक्तिगत राशि के आपसी प्रभावों की गणना करता है।


3. नक्षत्रों का अध्ययन: वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है, जिनका प्रभाव व्यक्तिगत और दैनिक जीवन पर होता है।


4. कुंडली मिलान: वैदिक ज्योतिष में कुंडली मिलान का अध्ययन किया जाता है, जिसमें दो व्यक्तियों की कुंडली की गुणमिलन और योग्यता का आकलन किया जाता है, जो विवाह या संबंध जोड़ने के लिए किया जाता है।


5. मुहूर्त: वैदिक ज्योतिष में मुहूर्त का महत्व होता है, और यह जानने का प्रयास किया जाता है कि किस समय कोई कार्य करना सबसे शुभ होगा।


वैदिक ज्योतिष विश्वास करता है कि हमारा कर्म, भाग्य, और व्यक्तिगत गुणधर्म ग्रहों और नक्षत्रों के संयोजन के आधार पर प्रभावित होते हैं। ज्योतिष गुरुओं और ज्योतिषियों के द्वारा व्यक्तिगत सलाह और पूर्वानुमान प्रदान किया जाता है ताकि व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं में सफलता पा सकें।



धन्यवाद

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