तिथि
एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर 19 उन्नीस घंटे से लेकर 30 तीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।
प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।
तिथि, पक्ष और माह
हिन्दू पंचांगों में मास, माह व महीना चन्द्रमा के अनुसार होता है। अलग अलग दिन पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा के भिन्न भिन्न रूप दिखाई देते हैं। जिस दिन चन्द्रमा पूरा दिखाई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं। पूर्णिमा के उपरांत चन्द्रमा घटने लगता है और अमावस्या तक घटता रहता है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता और फिर धीरे धीरे बढ़ने लगता है और लगभग चौदह व पन्द्रह दिनों में बढ़कर पूरा हो जाता है। इस प्रकार चन्द्रमा के चक्र के दो भाग है। एक भाग में चन्द्रमा पूर्णिमा के उपरांत अमावस्या तक घटता है , इस भाग को कृष्ण पक्ष कहते हैं। इस पक्ष में रात के आरम्भ मे चाँदनी नहीं होती है। अमावस्या के उपरांत चन्द्रमा बढ़ने लगता है। अमावस्या से पूर्णिमा तक के समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं। पक्ष को साधारण भाषा में पखवाड़ा भी कहा जाता है। चन्द्रमा का यह चक्र जो लगभग २९.५ दिनों का है चंद्रमास व चन्द्रमा का महीना कहलाता है । दूसरे शब्दों में एक पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति से अगली पूर्ण चन्द्रमा वाली स्थिति में २९.५ का अन्तर होता है।
चंद्रमास २९.५ दिवस का है , ये समय तीस दिवस से कुछ ही घटकर है। इस समय के तीसवें भाग को तिथि कहते हैं। इस प्रकार एक तिथि एक दिन से कुछ मिनट घटकर होती है। पूर्ण चन्द्रमा की स्थिति (जिसमे स्थिति में चन्द्रमा सम्पूर्ण दिखाई देता हो ) आते ही पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जाती है और कृष्ण पक्ष की पहली तिथि आरम्भ हो जाती है। दोनों पक्षों में तिथियाँ एक से चौदह तक बढ़ती हैं और पक्ष की अंतिम तिथि अर्थात पंद्रहवी तिथि पूर्णिमा व अमावस्या होती है।
माह के अंत के दो प्रचलन है। कुछ स्थानों पर पूर्णिमा से माह का अंत करते हैं और कुछ स्थानों पर अमावस्या से। पूर्णिमा से अंत होने वाले माह पूर्णिमांत कहलाते हैं और अमावस्या से अंत होने वाले माह अमावस्यांत कहलाते हैं। अधिकांश स्थानों पर पूर्णिमांत माह का ही प्रचलन है। चन्द्रमा के पूर्ण होने की सटीक स्थिति सामान्य दिन के बीच में भी हो सकती है और इस प्रकार अगली तिथि का आरम्भ दिन के बीच से ही सकता है।
तिथि 15 होती है , और 15 तिथि का एक पक्ष होता है।
पक्ष 2 होते है - 1 शुक्ल पक्ष , 2 कृष्ण पक्ष
यानी की 30 तिथि = एक मास महीना होता है।
।। तिथि ।।
तिथियों के नाम तिथियों के देवता
1. एकम या प्रतिपदा - अग्नि
2. द्वितीया - ब्रह्मा
3. तृतीया - गौरी
4. चतुर्थी - गणेश
5. पंचमी - नाग
6. षष्ठी - कार्तिकेय
7. सप्तमी - सूर्य
8. अष्टमी - शिव
9. नवमी - दुर्गा
10. दशमी - यमराज / काल
11. एकादशी / ग्यारस - विश्वेदेव
12. द्वादशी / बारस - विष्णु
13. त्रयोदशी / तेरस / प्रदोष - कामदेव
14. चतुर्दशी / चौदस - शिव
15. पूर्णिमा (शुक्लपक्ष) - चन्द्रमा
16. अमावस्या (कृष्णपक्ष) - पितृ / पितर
तिथि का निर्माण सृष्टि के समय हुआ था , जिससे दिन को पहचाना जा सके एक दिनांक की तरह तिथि = Date
।।तिथियों की संज्ञा।।
- १.६.११ तिथि को नंदा तिथि कहा जाता है।
- २,७,१२ तिथि को भद्रा तिथि कहा जाता है।
- ३,८,१३ तिथि को जया तिथि कहा जाता है।
- ४,९,१४ तिथि को रिक्ता तिथि कहा जाता है।
- ५,१०,१५ तिथि को पूर्णा तिथि कहा जाता है।
।। तिथि फलित ।।
- प्रतिपदा तिथि में जिसका जन्म होता है वह दुर्जनों के संग रहने वाला, धनहीन, कुल में कलंकी तथा सदा व्यसन में आसक्त रहता है ।
- द्वितीया में उत्पन्न मनुष्य, परस्त्रीगामी, सत्य और शौच से रहित, चोर और स्नेह हीन होता है ।
- तृतीया में जन्म लेने वाला चेष्टा हीन, विकल, धनहीन और दुसरो से द्वेष रखने वाला होता है ।
- चतुर्थी में जन्म लेने से मनुष्य भोगी, दाता, मित्रो से प्रेम करने वाला, पंडित, धन और संतान से युक्त होता है।
- पंचमी में उत्पन्न मनुष्य, व्यवहार ज्ञाता, गुणग्राही, माता-पिता का भक्त, दानी, भोगी, अल्प प्रेम करने वाला होता है।
- षष्ठी में जन्म होने से देश-विदेश में भ्रमण करने वाला, झगड़ालू और उदर रोग से पीड़ित होता है।
- सप्तमी में उत्पन्न मनुष्य, अल्प में ही संतुष्ट, तेजस्वी, सौभाग्य और गुणों से युक्त, संतान और धन से संपन्न होता है।
- अष्टमी में जन्म लेने वाला - धर्मात्मा, सत्यवक्ता, दाता, भोगी, दयावान, गुणज्ञ और सब कार्य में कुशल होता है।
- नवमी में जन्म लेने वाला देवो का भक्त, पुत्रवान, धनी, स्त्री में आसक्त और शास्त्र को पढने वाला होता है।
- दशमी में जन्म लेने वाला धर्म अधर्म का ज्ञाता, देशभक्त, यज्ञ कराने वाला, तेजस्वी और सुखी होता है।
- एकादशी में जन्म लेने वाला स्वल्प में संतुष्ट, राजा से मान्य, पवित्र, धनवान, पुत्रवान और बुद्धिमान होता है।
- द्वादशी में जन्म लेने वाला चंचल, अस्थिर बुद्धि, कृश शरीर, परदेश भ्रमण करने वाला होता है।
- त्रयोदशी में उत्पन्न महासिद्ध पुरुष, बड़ा पंडित, जितेन्द्रिय, परोपकारी होता है।
- चतुर्दशी में जन्म लेने वाला धनवान, धर्मात्मा, वीर, वचन को पालने वाला, राजमान्य ओर यशस्वी होता है।
- पूर्णिमा में उत्पन्न मनुष्य, संपत्तिवान, मतिमान, भोजन प्रिय, उद्योगी और परस्त्री में आसक्त रहने वाला होता है।
- अमावस्या में जन्म लेने वाला दीर्घ सूत्री, परद्वेषी, कुटिल, मुर्ख, पराक्रमी, गुप्त विचार, रखने वाला काले रहस्य को जानने वाला होता है।
No comments:
Post a Comment