षट् कर्म तंत्र मंत्र साधना


 द्वितीय परिच्छेद 

रावण सदाशिव सम्वादात्मक 

तंत्र मंत्र साधना

त्रेता युग में कैलाश पर्वत के शिखर पर, जो कि अनेक रत्नों से शोभित, अनेक वृक्षों एवं लताओं से व्याप्त था | जिस पर भांति भांति के पक्षी मधुर ध्वनियो में किल्लोल कर रहे थे |

जहाँ पर सब ऋतुए अनेकानेक फूलो एवं फलो से सुन्दर ज्ञात होती थी और शीतल, मंद, सुगंध पवन चल रहा था | वहा पर विराजमान भगवान् सदाशिव से रावण ने संसार के हित की कामना से उनसे पूछा |





रावण उवाच 

हे देवो के देव ! जगत्  गुरो ! सदाशिव ! संसार का सदा कल्याण करने वाले मै आपको प्रणाम करता हूँ | मेरे स्वामी, क्षण मात्र में ही सिद्धि को प्रदान करने वाली ऐसी तंत्र विद्या आप हमसे कहिये |

शिव उवाच 

भगवान शंकर बोले - हे वत्स ! तुमने संसार के हित की कामना से यह अच्छा प्रश्न किया किया, अतः तुम्हारे समक्ष इस उड्डीश नामक तंत्र को कहता हूं |

केवल पुस्तक में लिखी हुई विद्या बिना गुरु के सिद्धि प्रदान नही करती है, अतः बिना गुरु के इस तंत्र शास्त्र पर किसी का अधिकार नही हो सकता है अर्थात तंत्र शास्त्र में जो भी क्रियाएँ की जाये वे गुरुओ की सहायता से ही की जाये | 


पहले इस शास्त्र में षट् कर्म - 

१. मारण, 
२. मोहन,
३. उच्चाटन,
४. विद्वेषण,
५. आकर्षण,
६. वशीकरण
,

आदि के लक्षणों का वर्णन करता हूं, जो कि तंत्र मत के अनुसार सिद्धि रुपी फल को देने वाले है |


षट् कर्म 

१. शान्ति कर्म, 
२. वशीकरण,
३. स्तम्भन,
४. विद्वेषण,
५. उच्चाटन,
६. मारण,

इन छः प्रकार के कर्मो को मुनियों ने षट् कर्म कहा है |


षट् कर्म लक्षणम् 

जिस प्रकार से रोग, या किसी प्रकार की बाधादिको की शांति या अनिष्ट ग्रहों की शांति आदि की जाती है, उसी प्रयोग को शांति कर्म कहते है, जिस प्रयोग के द्वारा किसी स्त्री, राजा, शत्रु या इष्ट को वश में किया जाता है अर्थात अपनी इच्छा के अनुकूल आचरण कराया जाता है, उस प्रयोग को वशीकरण कहते है | जिस प्रयोग से अग्नि, जल, शत्रु के पराक्रम या शत्रु की सेना की रूकावट की जाती है उसी की स्तम्भन कर्म कहते है | जिस प्रयोग से एक दुसरे से लगे प्रेम को छुड़ा दिया जाता है, उसको विद्वेषण कहते है | जिस प्रयोग से मनुष्य अपने स्थान को छोड़ कर भाग जाये उसे उच्चाटन कहते है | जिस प्रयोग से मनुष्य का मरण हो जाता है, उसे मारण कहते है |


विषय कथनम

हे राक्षसराज रावण, इस ग्रन्थ के प्रथम प्रकरण में आकर्षण, दुसरे प्रकरण में उन्मादन, तीसरे में विद्वेषण, चौथे में उच्चाटन, पांचवे में ग्रामोच्चाटन, छठवे में जल स्तम्भन, आठवे में वशीकरण इसके अतिरिक्त और भी अँधा, बहिरा एवं गूंगा आदि बनाने का प्रयोग नवे, दशवे प्रकरण में वर्णित है |


इस ग्रन्थ में बहिरा बना देना, मुर्ख बना देना, भूत लगा देना, ज्वर चढ़ा देना, बुद्धि का स्तम्भन करना, दही को नष्ट कर देना, पागल बनाना, हाथी-घोडा को कुपित कर देना, सर्प एवं मनुष्य को बुला देना, खेती आदि का विनष्ट करना, दुसरे के ग्राम में प्रवेश करना इसके अतिरिक्त भूत आदि की सिद्धि करना, पादुका सिद्धि एवं नेत्र के अंजन आदि की सिद्धि शास्त्रीय रीति से वर्णित है |


इंद्र जाल की क्रीडा, यक्षिणी मंत्र साधना, गुटिका बनाना, आकाश में गमन करना, मरे हुए को जिलाना पुनः जीवित करना इसके अतिरिक्त और भी भयंकर विद्याओ, उत्तम मंत्रो एवं औषधियों तथा गुप्त कार्यो का वर्णन करूँगा | जो शंकर जी के  कहे हुए उड्डीश को नही जानता वह क्रोधित होकर क्या कर सकता है | यह उड्डीश  तन्त्र सुमेरु पर्वत को हिला देने वाला तथा पृथ्वी को सागर में डुबा देने वाला है |


यह तंत्र शास्त्र नीच कुलोत्पन्न को, पापी को, मुर्ख को, भक्ति हीन को, भूख (दरिद्र को), मोह में फसे हुए को, शंकित चित्त वाले को और विशेष करके निंदा करने वाले प्राणी को कदापि न देना चाहिए | क्योकि इनसे उड्डीश तंत्र की क्रिया नही हो सकती है | फिर सिद्धि तथा फल तो दूर रहा |


यदि इस विद्या की प्रतिष्ठा एवं अपनी आत्मा की रक्षा चाहे तो देवता व गुरु-भक्त, सज्जन, बालक, तपस्वी, वृद्ध, उपकारी तथा सुमति वाले विद्वान के प्राप्त होने पर ही उन्हें यह विद्या प्रदान करे | इसी में इस शास्त्र की प्रतिष्ठा है |


इस तंत्र शास्त्र के प्रयोग में तिथि, वार, नक्षत्र, व्रत, होम, काल बेला आदि का विचार नही किया जाता है | केवल तंत्र के ही बल से औषधियाँ सिद्धि प्रधान करने वाली होती है | जिसका साधन करने से क्षण मात्र में ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है |


जैसे चंद्रमा से हीन रात्रि, सूर्य से हीन दिवस तथा राजा से हीन राज्य सुखकर नही होता, उसी प्रकार गुरु से हीन मंत्र भी सुख तथा फल देने वाला नही होता है | अतः इसमें गुरु की अत्यंत आवश्यकता है |


जैसे इंद्र का वज्र दैत्यों का विनाशक है, वरुण का पाश महा बलवानो का भी बाधक है, जैसे यमराज का दंड सबको दण्डित करता है एवं जैसे अग्नि देव सबको भस्म करने की शक्ति रखते है |


उसी प्रकार इस शास्त्र में विहित प्रयोग भी शक्ति रखते है | यह असत्य नही है, कहाँ तक कहा जाय इन मंत्रो की शक्ति तो ऐसी है कि सूर्य को पृथ्वी पर बुला ले |


अपकारी, दुष्ट, दुराचारी, पापी ऐसे व्यक्तियों पर यदि मारण का प्रयोग करे तो कोई दोष नही है | यदि बिना प्रयोजन किसी पर मारण प्रयोग किया जाय तो अपना ही नाश ही नाश हो जाता है | जो इस तंत्र शास्त्र पर विश्वास नही करते उनको सिद्धि भी नहीं मिलती है |








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