मारण प्रयोग


रावण संहिता 
मारण प्रयोग

     हे रावण! अब मैं तुमसे मारण नाम का प्रयोग करता हूं | जो कि मनुष्यों को शीघ्र सिद्धि कर हैं | 

     मारण का प्रयोग जिस किसी पर थोड़ी सी गलती कर देने पर भी नहीं करना चाहिए | मारण का प्रयोग किसी पर तब करें, जब जान लें कि यह हमको जान से मार डालना चाहता हैं | 




     मूर्ख का किया हुआ प्रयोग उसी को स्वयं नष्ट कर देगा, अत: अपनी आत्मा की रक्षा को चाहने वाला मारण का प्रयोग भी न करें, क्योंकि इसमें अपना ही प्राण जाने का भय रहता हैं | 

     जो व्यक्ति अपने ज्ञान-दृष्टि से सम्पूर्ण विश्व को देखने वाला हैं तथा प्रत्येक जीवात्मा को ब्रह्मा के ही समान समझता हैं, वह संकटापन्न स्थिति उत्पन्न होने पर मारण का प्रयोग कर सकता हैं | यदि दूसरा कोई मारण करेगा तो दोष का भागी होगा | कथञ्चित् मारण का प्रयोग करना ही पड़े तो नीचे लिखे प्रमाण के अनुसार करें | 

     शत्रु के पैर के नीचे की मृत्तिका तथा चिता की भस्म एवं मध्यमा (बिचली) अंगुली का रक्त मिलकर एक पुतली मूर्ति बनावें |

     और उस मूर्ति को काले कपड़े में लपेट एवं काले डोरे से बांध कुशासनपर सुला कर एक दीप जलावें | 

     तथा मारण मंत्र का दस हजार जप कर पश्चात १०८ उदी लेकर प्रत्येक को मारण मंत्र से अभिमंत्रित करें | 

     उस पुतली के मुख में मारण-मंत्राभिमंत्रित उदी डाल देवें | अर्धरात्रि के समय इस मारण प्रयोग को करने से इंद्र तुल्य शत्रु भी मारा जाता हैं | 

     रात्रि में उक्त प्रयोग को करके प्रात:काल उस मूर्ति को श्मशान भूमि में गाड़ दे | इस प्रकार बराबर एक माह तक प्रयोग करते रहने पर निश्चित शत्रु की मृत्यु होती हैं | 

     मारण मंत्र- ॐ नम: कालसंहाराय अमुकं हन हन क्रीं हुं फट् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा | 

     इस ग्रन्थ के प्रयोग में जहां अमुक शब्द आवे वहां शत्रु का नाम लेता जावे | चार अंगुली प्रमाण एक नीम की लकड़ी लेकर उसमे शत्रु के सिर के बाल लपेट उसी से शत्रु का नाम लिखें पश्चात सावधानी से उस लिखे नाम से चिता के अङ्कार पर धूप देवे | इस प्रकार तीन या सात रात्रि तक धूप देने से शत्रु को प्रेत पकड़ लेता हैं | प्रयोग करने वाला व्यक्ति कृष्णपक्ष की अष्टमी को प्रयोग आरंभ करें तथा चतुर्दशी तक समाप्त कर दे और निम्न लिखित मंत्र को प्रतिदिन १०८ बार जपे | 

       मंत्र- ॐ नमो भगवते भूताधिपतये विरूपाक्षाय घोरदंष्ट्रिणे ग्रहयक्षभूतेनानेन शङ्कर अमुकं हन हन दह दह पच पच गृह्व हुं फट स्वाहा ठ: ठ: |

     चार अङ्गुल प्रमाण मनुष्य की हड्डी लेकर पुष्य नक्षत्र में सिसके घर गाड़ दे | उसका परिवार सहित नाश हो जाए | यह प्रयोग बिना मंत्र के ही प्रसिद्ध हैं | 
  
     इसी प्रकार एक अंगुल प्रमाण सर्प की हड्डी लेकर अश्लेषा नक्षत्र में शत्रु के घर में गाड़ दे और निम्नलिखित मंत्र का दस हजार जप कर दे तो शत्रु की संतति का विनाश होता हैं | 

       मंत्र- ॐ सुरेश्वराय स्वाहा |

     बिना मंत्र जप के कार्य नहीं सिद्ध होगा | अंत: मंत्र जपे | 

     चार अंगुल प्रमाण घोड़े की हड्डी अश्विनी नक्षत्र में निम्नलिखित मंत्र से अभिमन्त्रित करके गाड़ दे तो शत्रु के परिवार का नाश होता हैं | 

       मंत्र- ॐ हुँ हुँ फट् स्वाहा | सप्तदशाभिमंत्रितं कृत्वा निखनेत् | 

     सत्रह बार मंत्र से अभिमन्त्रित करके तबी हड्डी गाड़े | 

     निम्ब की कील आर्द्रा नक्षत्र में शत्रु के शयनागार में गोड़ने से शत्रु का मरण होने लगता हैं और उसे उखाड लेने पर पुनः सुखी हो जाता हैं | 

     इसी प्रकार शिरीष की कील शत्रु के घर आर्द्रा नक्षत्र में गाड़ने से शत्रु का नाश होता हैं | 

       मंत्र-  हुँ हुँ फट् स्वाहा | 
       एकविंशतिवारमभिमंत्रितं कृत्वा द्वयोरपि प्रयोगे निखनेत् | 

     उपरोक्त दोनों प्रयोगों में २१ बार अभिमन्त्रित करके गाड़ने से सपरिवार शत्रु का विनाश होता हैं |






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