महीनों के नाम
इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्रायः रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
चन्द्रमास और ग्रह
सूर्य और चंद्र ग्रहण का सम्बन्ध सूर्य और चन्द्रमा की पृथ्वी के सापेक्ष स्थितियों से है। सूर्य ग्रहण केवल अमावस्या को ही आरम्भ होते है और चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा को ही आरम्भ होते हैं। एक पूर्ण सूर्य ग्रहण की सहायता से अमावस्या तिथि के अंत को समझना सरल है। पूर्ण सूर्य ग्रहण का आरम्भ अमावस्या तिथि में होता है , जब सूर्य ग्रहण पूर्ण होता है तब अमावस्या तिथि का अंत होता है और उसके बाद अगली तिथि आरम्भ हो जाती है जिसमे सूर्य ग्रहण समाप्त हो जाता है। दो सूर्य ग्रहणों या दो चंद्र ग्रहणों के बीच का समय एक या छह चंद्रमास हो सकता हैं। ग्रहणों के समय का अध्ययन चंद्रमासों में करना सरल है क्योकि ग्रहणों के बीच की अवधि को चंद्रमासों में पूरा पूरा विभाजित किया जा सकता है|
महीनों के नाम | पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा इस नक्षत्र में होता है |
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चैत्र | चित्रा, स्वाति |
वैशाख | विशाखा, अनुराधा |
ज्येष्ठ | ज्येष्ठा, मूल |
आषाढ़ | पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ |
श्रावण | श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा |
भाद्रपद | पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र |
आश्विन | रेवती, अश्विनी, भरणी |
कार्तिक | कृतिका, रोहिणी |
मार्गशीर्ष | मृगशिरा, आर्द्रा |
पौष | पुनवर्सु, पुष्य |
माघ | अश्लेषा, मघा |
फाल्गुन | पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त |
सौरमास
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।
12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रत और उपवास का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। मकर संक्रांति के दिन व्रत रखने से रोग और शोक मिटते हैं। दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है, परंतु यदि सूर्य वृश्चिक राशि में हो तो अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है। उत्तरायण में मीन मास में विवाह वर्जित है।
सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।
सूर्य धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे। इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।
चंद्रमास
चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमावस्यांत'(अमांत) मास मुख्य चंद्रमास है। कृष्ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमांत' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 354 दिन का होने से प्रतिवर्ष 11 दिन का अंतर आ जाता है। सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष मे सामंजस्यता बनाये रखने के लिये प्रत्येक तीसरे वर्ष में इन 11-11 दिनों को संयुक्त करने से जो 33 दिन बनता है इसका एक अतिरिक्त माह बनाकर चन्द्र मास में जोड़ दिया जाता है इस मास को ही अधिक मास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है इस कारण प्रत्येक तीसरे चन्द्र वर्ष में 12 की अपेक्षा 13 माह होते हैं |
चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन।
नक्षत्रमास
आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।
चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।
महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:
- चैत्र : चित्रा, स्वाति।
- वैशाख : विशाखा, अनुराधा।
- ज्येष्ठ : ज्येष्ठा, मूल।
- आषाढ़ : पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, शतभिषा।
- श्रावण : श्रवण, धनिष्ठा।
- भाद्रपद : पूर्वाभाद्रपद , उत्तराभाद्रपद ।
- आश्विन : अश्विनी, भरणी।
- कार्तिक : कृतिका, रोहणी।
- मार्गशीर्ष : मृगशिरा, आर्द्रा ।
- पौष : पुनर्वसु, पुष्य।
- माघ : मघा, अश्लेशा।
- फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त।
- नक्षत्रों के गृह स्वामी
- केतु : अश्विनी, मघा, मूल।
- शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा ।
- रवि : कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा ।
- चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
- मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा ।
- राहु : आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा।
- बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वाभाद्रपद।
- शनि . पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपद।
- बुध : अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती।
महीने (संस्कृत) | महीने (हिन्दी तद्भव और अर्धतत्सम) | पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा का नक्षत्र | महीने (असमिया) | महीने (बंगाली ) | महीने (भोजपुरी) |
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चैत्र | चैत | चित्रा, स्वाति | চ’ত सौत | চৈত্র चोइत्रो | 𑂒𑂶𑂞 चैत |
वैशाख | बैसाख | विशाखा, अनुराधा | ব’হাগ বৈশাখ | জ্যৈষ্ঠ बोइशाख | 𑂥𑂶𑂮𑂰𑂎 बैसाख |
ज्येष्ठ | जेठ | ज्येष्ठा, मूल | জেঠ जेठ | জ্যৈষ্ঠ जोईष्ठो | 𑂔𑂵𑂘 जेठ |
आषाढ | असाढ़ | पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ | আহাৰ आहार | আষাঢ় आषाढ़ | 𑂄𑂮𑂰𑂜 आसाढ़ |
श्रावण | सावन | श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा | শাওণ शाऊन | শ্রাবণ सार्बोन | 𑂮𑂰𑂫𑂢 सावन |
भाद्रपद | भादों | पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र | ভাদ भादौ | ভাদ্র भाद्रो | 𑂦𑂰𑂠𑂷 भादो |
आश्विन | आसिन, क्वार, कुँआर | रेवती, अश्विनी, भरणी | আহিন अहिन | আশ্বিন आश्विन | 𑂄𑂮𑂱𑂢/𑂍𑂳𑂄𑂩 आसिन/कुआर |
कार्तिक | कातिक | कृतिका, रोहिणी | কাতি काति | কার্তিক कार्तिक | 𑂍𑂰𑂞𑂱𑂍 कातिक |
मार्गशीर्ष, अग्रहायण | मँगसिर, अगहन | मृगशिरा, आर्द्रा | আঘোণ अगहन | অগ্রহায়ণ ओग्रोह्योन | 𑂃𑂏𑂯𑂢 अगहन |
पौष | पूस | पुनवर्सु, पुष्य | পোহ पूह | পৌষ पौष | 𑂣𑂴𑂮 पूस |
माघ | माघ | अश्लेषा, मघा | মাঘ माघ | মাঘ माघ | 𑂧𑂰𑂐 माघ |
फाल्गुन | फागुन | पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त | ফাগুন फागुन | ফাল্গুন फाल्गुन | 𑂤𑂰𑂏𑂳𑂢 फागुन |
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