|| श्री ||
देवादि देव महादेव प्रणीत
तंत्र रहस्य
तंत्र शास्त्र के प्रधान तीन भेद है, आगम यामल और तंत्रवाराही तंत्र के मतानुसार- आगम, यामल और तन्त्र शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ l
'सृष्टिश्च प्रलयश्चैव देवतानां तथार्चनम् |
साधनं चैव सर्वेषां पुरश्चरणमेव च ||
षट्कर्म साधनं चैव ध्यान योग श्रतुर्विधः|
सप्तभिर्लक्षणैर्युक्तमागमं तद्विदुर्बुधाः ||'
तंत्रशास्त्र के प्रधान रूप से तीन भेद हैं-आगम, यामल और तंत्र | वाराही तंत्र के मतानुसार सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा, सब का साधन और मन्त्रों के पुरश्चरण तथा षट्कर्म साधन और चार प्रकार के ध्यानयोग, जिसमें यह सात प्रकार के लक्षण हों उसको आगम तंत्र कहा जाता है |
"सर्गश्च प्रति सर्गश्च मंत्र निर्णय एव च |
देवतानां च संस्थानं तीर्थानां चैव वर्णनम् ||
तथैवाश्रम धर्मश्च विप्र संसथान मेव च |
संस्थानं चैव भूतानां यंत्राणां चैव निर्णयः ||
उत्पत्तिर्विबुधानां च तरुणां कल्प संज्ञितम् |
संस्थानं ज्योतिषां चैव पुराणाख्यानमेव च ||
कोषस्य कथनं चैव व्रतानां परिभाषणम् |
शौचा शौचस्य चाख्यानं नरकाणां च वर्णनम् ||
हर चक्रस्य चाख्यानं स्त्रीपुंसोश्चैव लक्षणम् |
राजधर्मो दानधर्मो युगधर्मस्तथैव च ||
व्यवहारः कथ्यते च तथा चा ध्यात्म वर्णनम् |
इत्यादि लक्ष्णैर्युक्तं तंत्र मित्यभि धीयते ||"
इसी प्रकार से मंत्र निर्णय, देवताओं के संस्थान, तीर्थ वर्णन, आश्रम धर्म, विप्र संस्थान, भूत प्रेतादि के संस्थान, यात्रा निर्णय, देवताओं की उत्पत्ति, वृक्षोत्पत्ति, कल्प वर्णन, ज्योतिष संस्थान, पुराणाख्यान, कोप-कथन, व्रत-कथन, शौचाशौच वर्णन, स्त्री-पुरुष के लक्षण, राज धर्म, दान धर्म, युग धर्म, व्यवहार और आध्यात्मिक विषय का वर्णन इत्यादि लक्षण का जिसमें समावेश हो उसको तन्त्र कहा जाता है |
सृष्टिश्च ज्योतिषाख्यानं नित्य कृत्य प्रदीपनम् |
क्रमसूत्रं वर्णभेदो जाति भेदस्तथैव च ||
युगधर्मश्च संख्यातो याम्लस्याष्टलक्षणम् |
सृष्टि तत्त्व, ज्योतिष का वर्णन, नित्य-कर्म, क्रम-सूत्र, वर्ण भेद, जाति भेद और युग धर्म यह आठ प्रकार के लक्षण, यामल ग्रंथों के लक्षण हैं ।
वाराही तंत्र के मतानुसार तंत्र ग्रंथों के समस्त श्लोकों की संख्या (देवलोक, ब्रह्मलोक, भूलोक तथा पाताललोक आदि मिलाकर) कुल नौ लाख है और इस भारतवर्ष में एक लाख ही हैं |
आगमं विविधं प्रोक्तं चतुर्थं चैश्वरं स्मृतम् ||
कल्पश्चतुर्विधः प्रोक्तो ह्यागमो डामरस्तथा |
यामलश्च तथा तंत्रं तेपां भेदाः पृथक्पृथक ||
इससे आगम तीन प्रकार के हैं | चौथा ऐश्वर है, कल्प के भी चार प्रकार हैं, यथा आगम डामर यामल और तंत्र यह प्रकार भेद देखा जाता है | महाविश्वसार तंत्र में लिखा है कि
चतुषष्टिश्च तंत्राणि यामलादिनी पार्वती |
सफलानीह वाराहे विष्णु कान्तासु भूमिषु ||
कल्पभेदेन तंत्राणि कथितानि च यानि च |
पाखण्ड मोहना यैव विफलानीह सुंदरी ||
यामल आदि को लेकर ६४ चौसठ तंत्र विष्णुकान्ता भूमि में फलदायक है कल्प भेद में जो सब तंत्र कहे गये है, वह पाखंडियो को मोहन के लिए है उनसे कोई फल नही होता |
श्रेष्ठता - महानिर्वाण तंत्र में महादेव जी ने कहा है -
"कलिकल्मषदीनानां द्विजातीनां सुरेश्वरि |
मेध्यामेध्यविचाराणां न शुद्धिः श्रौत कर्मणा ||
न संहिताद्यैः स्मृतिभिरिष्ट सिद्धिर्नृणां भवेत् |
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यं सत्यं मयोच्यते ||
विना ह्यागममार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये |
श्रुतिस्मृतिपुराणादौ मयैवोक्तं पूरा शिवे |
आगमोक्त विधानेन कलौ देवान्य जेत्सुधीः |"
कलिकाल में कलिदोष से दीन हुए ब्राह्मण क्षत्रिय आदि को पवित्र और अपवित्र का विचार नहीं रहेगा फिर वेद में कहे हुए कर्म करके वह किस प्रकार सिद्धि को प्राप्त कर सकेंगे ? इस अवस्था में स्मृति सहिता आदिको से भी मनुष्यों की इष्ट सिद्धि न होगी। हे प्रिये ! मै सत्य सत्य ही कहता हूँ कि, कलियुग में आगम मार्ग के अतिरिक्त दूसरी गति नहीं है । हे शिवे ! वेद स्मृति पुराण आदि के बीच में मै कह चूका हूँ, कलियुग में साधक तंत्रोक्त विधान द्वारा देवताओ की पूजा करेंगे ।
इस कलियुग में, विषहीन सर्प के समान सारे वैदिक मंत्र वीर्य हीन हो गये हैं | सत्य युग, त्रेता और द्वापर युग में यह समस्त मंत्र सफल होते थे लेकिन इस समय ये सारे मन्त्र, मृत तुल्य हो गये हैं इस प्रकार से इस कलिकाल में मंत्र के द्वारा कार्य करने से फल सिद्धि नहीं होती केवल श्रम ही होता है ।
कलि-काल (यानी कलियुग में) में अन्य शास्त्रोक्त विधि द्वारा जो मनुष्य सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा करता है वह निर्बोध प्यासा हो कर भी गंगा जी के किनारे कुआ खोदता है | तंत्र शास्त्र में कहे हुए मंत्र कलियुग में शीघ्र फल देने वाले होते हैं | जप यज्ञादि समस्त कर्मों में तंत्रोक्त मंत्र ही श्रेष्ठ हैं |
प्राचीन ग्रंथों में तंत्र शास्त्र के कई ग्रंथों के नाम आये थे लेकिन प्रामाणिक रूप से आगमतत्त्वविलास में निम्नोक्त नाम दिए गए हैं -1. स्वतंत्रतंत्र 2. फेत्कारिणीक्षेत्र 3. उत्तरतंत्र 4. नीलतंत्र 5. वीरतंत्र 6. कुमारीतन 7. कालीतंत्र 8. नारायणीतंत्र 9. तारिणीतंत्र 10. बालातंत्र 11. समयाचार तंत्र 12. भैरवतंत्र 13. भैरवीतंत्र 14. त्रिपुरातंत्र 15. वामकेश्वर तंत्र 16. कुटकुटेश्वरतंत्र 17. मातृकातंत्र
18.सनत्कुमारतंत्र 19. विशुद्धेश्वरतंत्र 20. संमोहनदंत्र 21. गौतमीयतंत्र 22. वृहद्भौतमीयतंत्र 23. भूतभैरवतंत्र 24. चामुण्डातंत्र 25. पिंगलातंत्र 26. वाराहीतंत्र 27. मुण्डमालातंत्र 28. योगिनीतंत्र 29. मालीनीविजयतंत्र 30. स्वच्छन्दभैरव तंत्र 31. महातंत्र 32. शक्तितंत्र 33. चिन्तामणितंत्र 34. उन्मत्तभरवतंत्र 35. त्रैलोक्यसारतंत्र 36. विश्वसारतत्र 37. तंत्रामृत 38. महाफेत्कारिणी तंत्र 39. बारवीयतंत्र 40.तोडलतंत्र
41. मालिनीतंत्र 42. ललितातंत्र 43. त्रिशक्तितंत्र 44. राजराजेश्वरीतंत्र 45. महामाहेश्वरीत्तरतंत्र 46. गवाक्षतंत्र 47. गांधर्वतंत्र 48. त्रैलोक्यमोहनतंत्र 49. हंसपारमेश्वरतंत्र 50. हंसमाहेश्वरतंत्र 51. कामधेनुतंत्र 52. वर्णविलास 53. मायातंत्र 54. मैत्रराज 55. कुञ्जिकातंत्र 56. विज्ञानलसिंका 57. लिंगगम 58. कालोतर 59. ब्रह्मयामल 60. दियामल 61. रुद्रयामल 62. वृह्द्यामल 63. सिद्धयामल 64.कल्पसूत्र
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त तंत्रके और भी ग्रंथ पाये जाते हैं । यथा 1. मत्स्यसूक्त 2. कुलसूक्त 3. कामराज 4. शिवागम 5. उड्डीश 6. कुलोडीश 7. वीरभद्रोड्डीश 8. भूतड़ामर 9. डामर 10. यक्षडामर 11. कुलसर्बत्व 12. कालिकाकुलसर्वस्व 13. कुलचूडामणि 14. दिव्य 15. कुलसार 16. कुलार्णव 17. कुलामृत 18. कुलावली 19. कालीकालार्णव 20. कुलप्रकाश 21. वासिष्ठ तंत्र
22. सिद्धसारस्वत 23. योगिनी हृदय 24. करलीहृदय 25. भातृकार्णव 26. योगिनीजालकुरक 27. लक्ष्मीकुलाव 28. तारार्णव 29. चन्द्रपीठ 30. मेरुतंत्र 31. चतुःशती 32. तत्त्वबोध 33. महोय 34. स्वच्छन्दसारसंग्रह 35. ताराप्रदीप 36. संकेत चंद्रोदय 37. पत्रिशत्तत्त्वक 38. लक्ष्यनिर्णय 39. त्रिपुराणेब 40. विष्णुधर्मोत्तर 41. मंत्रर्पण 42. वैष्णवामृत 43. मानसोल्लास
44. पूजापदीप 45. भक्ति मंजरी 46. भुवनेश्वरी 47. पारिजात 48. प्रयोगसार 49. कामरत्न 50. क्रियासार 51. आगमदीपिका 52. भावचूडामणि 53. तत्रचूड़ामणि 54. बृहत् श्रीक्रम 55. श्रीक्रम 56. सिद्धान्त शेखर 57. गणेशवि मशिनी 58. मंत्रमुकावली 59. तत्वकौमुदी 60. तंत्रकौमुदी 61. मंत्रतंत्रप्रकाश 62. रामाचेनचंद्रिका 63. शारदातिलक 64. ज्ञानाणेच 65. सारसमुच्चय
66. कल्पद्रुम 67. ज्ञानमाला 68. पुरधरणचंद्रिका 69. आगमोतर 70. तत्त्वसार 71. सारसंग्रह 72. देवप्रकाशिनी 73 तंत्राव 74. क्रमदीपिका 75. तारारहस्य 76. श्यामारहस्य 77. तंत्ररत्न 78. तंत्रप्रदीप 79. ताराविलास 80. विश्वमातृका 81. पंपचसार 82. तंत्रसार 83. रत्नावली |
इनके अतिरिक्त महासिद्धि सारस्वत में, सिद्धीश्वर नित्यतंत्र देयागम, निबंध तंत्र, राघानंद कामाख्या तंत्र, महाकाल तंत्र, यंत्र चिन्तामणि, काली विलास और महाचीन तंत्र का वर्णन भी पाया जाता है । उपरोक्त तन्त्र ग्रंथों के अलावा कुछ और तंत्र ग्रन्थ भी पाए जाते हैं । यथा-1. आचार सार प्रकार 2. आचारसार तन्त्र 3. आगम चंद्रिका 4. आगम सार
5. अन्नदाकल्प 6. ब्रह्मज्ञान महातंत्र 7. ब्रह्मज्ञान तंत्र 8. ब्रह्माण्ड तंत्र 9. चिंतामणि तंत्र 10. दक्षिणकल्प तंत्र 11. गौरीकांचलिका तंत्र 12. गायत्री तंत्र 13. ब्राह्मणोल्लास तंत्र 14. गृहथमिक तंत्र 15. ईशान संहिता 16. जप रहस्य 17. ज्ञानानंद तरंगिणी 18. ज्ञान तंत्र 19. कैवल्यतंत्र 20. ज्ञानसंकलिनी तंत्र 21. कौलीदीपिका तंत्र 22. क्रमचंद्रिका तंत्र 23. कुमारीकवचोल्लास 24. लिंगाचन तंत्र
25. निर्वाण तंत्र 26. महानिर्वाण तंत्र 27. वृहद निर्वाण तंत्र 28. बरदातंत्र 29. मातृकाभेद तंत्र 30. निगमकल्पद्रुम 31. निगमतत्त्वसार 32. निरुत्तर तंत्र 33. पीठमालातंत्र 34. पुरश्चरण विवेक 35. पुरश्चरणर सोल्लास 36. शक्तिसंगम तंत्र 37. सरस्वती तंत्र 38. शिवसंहिता 39. श्रीतत्त्वबोधिनी 40. स्वरोदय श्यामाकल्पलता 41. श्यामार्चन चंद्रिका 42. श्यामा प्रदीप 43. ताराप्रदीप 44. शाक्तानंद तरंगिणी 45. तत्वानंद तरंगिणी 46. त्रिपुरसारमुच्चय 47. वर्णभैरववर्णोद्धारतंत्र 48. वीजचिंतामणि तंत्र 49. योगिनिद्वय तंत्र 50. दीपिकायमिले तंत्र इत्यादि ।
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